Monday, November 18, 2019


नमस्कार,
यह पंक्तियाँ मैंने मेडिटेशन के बाद लिखी थी, जो एहसास था , वह इस प्रकार था---

सूर्य मद्धम-सा निकला है
ब्रह्ममुहूर्त में आकाश-भर बिखरा है
मैं हूँ अभी इसी पल में
जीना चाहती हूँ
पूर्णतः
इन्हीं नम आँखों में
धीरे से उगाना चाहती हूँ
सूर्य मन में
मन तभी ले पाएगा
आनंद
क्षण-क्षण भर में
'साक्षात'
-प्राची अग्रवाल

1 comment:

  1. Such a beautiful expression of the feelings, could actually relate to each and every word 😍🌸loved it all👏👏

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