Tuesday, November 12, 2019

Shabd

शब्द
चंद शब्द हैं अंदर मेरे
जो भटक रहे हैं इधर-उधर
कच्ची गीली मिट्टी से हैं अंतर
जो ढलेंगे घड़ा बनकर

कुछ सौंधापन तलाश रहा है मन
वो मिठास पानी की तरह
जो ज्वाला में तपकर भी
दे जाए शीतलता
-प्राची  'साक्षात'

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साक्षात मैं हूँ

हां, मैं हूँ! मेरे इर्द गिर्द है   सारा जहां सोचा मैंने जो वही पूरा जहाँ मैं हूँ ना देख रहा सबकुछ जब घुल गया सबमें मैं ना रहा समझी ये मैं सब...