Monday, October 14, 2019

दास्तान

दास्तान 
नमस्कार! मेरा नाम प्राची अग्रवाल है और यह कविता मैंने अपने कॉलेज के समय लिखी थी। मेरी पहली कविता, जिसने मुझे आगे लिखने की प्रेरणा दी। यह कविता मैंने  एक छोटी सी बच्ची पर लिखी थी, जो   अपनी जान गवाँ बैठी, जिसे मैंने कभी देखा नहीं था। मैं उस दिन ज़िद कर रही थी जन्मदिन की पार्टी में जाने के लिए , पर वो.......कहीं  चली  गई........  
मेरा दुःख, एक बालिश्त भर भी नहीं
उनका क्या,जो दुनिया मे रहे ही नहीं 
हज़ारों किरणें छूकर, उन नन्हे हाथों को 
एक पल में ले गई, उसकी साँसों को 
छोटी - सी जान थी वो,
दुनिया तो उसने देखी ही नहीं 
मैं रो रही  थी अपनी किस्मत को 
ज़िद कर रही थी महफिल में जाने को 
पर वो ? वो तो, चली गई,
उस देश में, जिसका अर्थ वो समझती ही नहीं 
" कितनी शांत, कितनी अन्जान होगी वो 
तरस रही होगी, अपनी माँ के पल्लू से लिपटने को 
आवाज़ भी कोई न लगा पाया होगा उसे,
चली गई होगी पल भर में,  'अम्मा ' कहती हुई वो "
ज़िन्दगी में क्या-क्या पड़ा है, समझने को 
हर एक दुःख उमड़ पड़ा है, गरजने को 
निकल पड़े हैं, आँसू उसके लिए, 
जिसको आज तक मैंने, 
देखा ही नहीं।  

साक्षात मैं हूँ

हां, मैं हूँ! मेरे इर्द गिर्द है   सारा जहां सोचा मैंने जो वही पूरा जहाँ मैं हूँ ना देख रहा सबकुछ जब घुल गया सबमें मैं ना रहा समझी ये मैं सब...