परतें
पैदा होते हीसुंदर है जहां....
उसके बाद तो
इसकी नज़र
उसका नज़रिया
हवा लग गयी....
कि ओढ़ता गया
शॉल....
गर्मी इतनी लगी
कि बीमार पड़ गया
उन शॉल को उतार कर
ठंड लगने का डर था
फिर भी
एक- एक करके
जब हटाईं शॉल
लो
अब बेहतर
लगने लगा
-प्राची 'साक्षात'
हां, मैं हूँ! मेरे इर्द गिर्द है सारा जहां सोचा मैंने जो वही पूरा जहाँ मैं हूँ ना देख रहा सबकुछ जब घुल गया सबमें मैं ना रहा समझी ये मैं सब...
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