नमस्कार,
यह पंक्तियाँ मैंने मेडिटेशन के बाद लिखी थी, जो एहसास था , वह इस प्रकार था---
सूर्य मद्धम-सा निकला है
ब्रह्ममुहूर्त में आकाश-भर बिखरा है
मैं हूँ अभी इसी पल में
जीना चाहती हूँ
पूर्णतः
इन्हीं नम आँखों में
धीरे से उगाना चाहती हूँ
सूर्य मन में
मन तभी ले पाएगा
आनंद
क्षण-क्षण भर में
'साक्षात'
-प्राची अग्रवाल